रायबरेली-नहीं मिला आवास , चूर चूर हो गए गरीब के सपने

रायबरेली-नहीं मिला आवास , चूर चूर हो गए गरीब के सपने

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        रिपोर्ट-सागर तिवारी

- खंडहर में बसर हो रही गरीबों की जिंदगी 

ऊंचाहार-रायबरेली - अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है , मुद्दत हुई सोचा था एक घर होने का सपना मैने । किसी शायर की ये पंक्तियां  गरीब की बेबसी और सरकार द्वारा दिखाए जाने वाले सपनों पर सटीक है। सरकार ने हर गरीब को छत देने के सपने दिखाए तो गरीब की उम्मीदें बढ़ी, किंतु सरकारी तंत्र की मनमानी में ये सपने चूर चूर हो गए और गरीब की उम्मीदें भी । यह हकीकत गांव गांव नजर आती है।
       ऊंचाहार ब्लाक के पूरे त्रिभुवन मजरे शहजादपुर के रहने वाले राजेश कुमार की हालत उक्त शेर से जुदा नहीं है । राजेश के तीन बच्चे दो बेटियां और एक बेटा है । ओबीसी वर्ग से आते हैं , भूमिहीन है । वो जिस खंडहर में जीवन बसर कर रहे हैं , वो करीब सौ साल पुराना है । कई दशक से वह एक अदद पक्की छत के इंतजार में हैं। माली हालत ऐसी है कि वो अपने लिए एक दीवार भी खड़ी नहीं कर सकते हैं। सरकार ने गरीबों को आवास देने के सपने दिखाए तो राजेश की उम्मीदों को पंख लगे , उन्होंने आवास के लिए अर्जी लगाई , प्रधान से लेकर विधायक , मंत्री तक की चौखट पर दस्तक दी , किंतु आजतक उन्हे आवास नहीं मिला । यह कहानी केवल एक राजेश की नहीं है , क्षेत्र के सैंकड़ों परिवारों की यही दास्तां है । दरअसल इस पूरे सिस्टम में सरकारी तंत्र बड़ा बाधक है । जिसमें यदि किसी गरीब को छत चाहिए तो प्रधान से लेकर बीडीओ तक सबको खुश करना जरूरी होता है , यदि किसी गरीब के पास सबको खुश करने का सामर्थ नहीं तो उसको खुली आसमान में जीवन बसर करना उसकी नियति बन जाती है । यही हाल राजेश का भी है। जो आज भी कच्ची दीवार के खंडहर में पॉलिथीन डालकर परिवार के साथ बसर कर रहे हैं। खंड विकास अधिकारी कामरान नेमानी का कहना है कि आवास आवंटन में एक निर्धारित प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया के तहत जिनका चयन पात्रता में हुआ है , उन्हे आवास दिया गया है । यदि कोई पात्र व्यक्ति आवास से छूटा है तो उसका पुनः चयन करके उसे लाभान्वित किया जायेगा ।