रायबरेली-22 साल से टीबी उन्मूलन का बोझ उठाने वाले संविदाकर्मी फिर निराश

रायबरेली-22 साल से टीबी उन्मूलन का बोझ उठाने वाले संविदाकर्मी फिर निराश

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रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)
मो-8573856824

स्थायी समाधान का ‘वादा’ अब भी लटका, उम्मीदें टूटने लगीं

लखनऊ-टीबी मुक्त भारत का सपना गढ़ने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के संविदा कर्मचारी—22 साल की सेवाओं के बाद भी असुरक्षा, अनदेखी और ठोस नीति के इंतज़ार में हैं।

प्रदेश के हज़ारों कर्मचारी कहते हैं कि मैदान में धूप, बारिश, गांवों की पगडंडियों और महामारी के बीच मरीजों तक दवा पहुंचाने से लेकर केस फाइंडिंग, उपचार मॉनिटरिंग, दवा उपलब्धता, माइक्रो-प्लानिंग और डेटा अपडेट—सबसे कठिन काम उन्होंने ही संभाला। लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ़ अनिश्चितता और वेतन रोक जैसी तकलीफें मिलीं।

कर्मचारियों का कहना है कि विभाग ने वर्षों में कई प्रस्ताव शासन को भेजे—संविदाकर्मियों के समायोजन, सेवा सुरक्षा और नीतिगत स्थिरता पर निर्णय मांगा गया। लेकिन फाइलें आज भी वहीं अटकी हैं। जमीन पर टीबी उन्मूलन की असली लड़ाई लड़ने वाले इन कर्मियों के मुताबिक, विभागीय चुप्पी ने उनमें निराशा और बेचैनी बढ़ा दी है।

*ये सिर्फ नौकरी नहीं, 20–22 साल की ज़िंदगी का सवाल: करुणा शंकर मिश्र*
उत्तर प्रदेश क्षय रोग वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक संघ (पंजी.) के प्रदेश अध्यक्ष करुणा शंकर मिश्र बताते हैं कि दो दशक से सेवाएं देने वाले कर्मचारियों के लिए यह केवल नौकरी नहीं, बल्कि परिवार के भविष्य और सम्मान का मुद्दा है।
वो कहते हैं—“शासन और विभाग को अनेक पत्र भेजे गए, लेकिन आज तक कोई ठोस नीति नहीं। कर्मचारी इंतज़ार में हैं और व्यवस्था खामोश है।”