यूपी में 21 ओबीसी, 18 सवर्ण, 12 दलित उम्मीदवार उतार साधा जातीय समीकरण, उप-जातियों का भी बनाया बैलेंस
आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा हिंदुत्व-राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक समीकरण साधने पर भी पूरा जोर दे रही। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश है, जहां शनिवार को जारी 51 उम्मीदवारों की सूची में पार्टी ने न सिर्फ सबसे अधिक ओबीसी को टिकट दिए, बल्कि ओबीसी में शामिल 10 जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है।
पहली सूची में पार्टी ने ओबीसी के 21, अगड़े वर्ग के 18 और दलित बिरादरी के 12 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं। पहली सूची के बाद अब सबकी निगाहें बुधवार को होने वाली पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक पर टिकी हैं। उम्मीद है कि पार्टी इस बैठक में अपने हिस्से की बाकी बची 24 सीटों में से ज्यादातर पर एक नाम पर सहमति बना लेगी। सबसे ज्यादा दिलचस्पी पीलीभीत, सुल्तानपुर, कैसरगंज बदायूं और रायबरेली सीट को लेकर है। देखना होगा कि इन सीटों पर पार्टी वरुण गांधी, मेनका गांधी, बृजभूषण शरण सिंह और संघमित्रा मौर्या पर फिर भरोसा जताती है या नहीं। रायबरेली में पार्टी अपना उम्मीदवार तय करने से पहले यह जानना चाहती है कि इस सीट पर गांधी परिवार का कोई सदस्य मैदान में उतरता है या नहीं।
वर्ग ही नहीं, सभी जातियों पर ध्यान
पार्टी ने ओबीसी को दिए 21 टिकटों में इस वर्ग की दस जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है। इनमें लोधी, कुर्मी बिरादरी के चार-चार, जाट बिरादरी के तीन, गुर्जर-निषाद, तेली बिरादरी से दो-दो और कश्यप, कुशवाहा, यादव, सैनी बिरादरी सै एक-एक उम्मीदवार बनाए गए हैं।
इसी तरह, 12 दलितों में पांच पासी, एक पाल, एक कोरी, एक धानुक और दो जाटव और दो खटीक प्रत्याशियों पर दांव लगाया गया है। जिन 18 अगड़ों को टिकट दिया गया है, उनमें ब्राह्मण बिरादरी से 10, राजपूत से सात और पारसी से एक उम्मीदवार है।
न उम्र का बंधन न तीसरी बार टिकट से इन्कार
जीत को पहली प्राथमिकता देने की रणनीति के तहत तमाम आशंकाओं को पीछे छोड़ते हुए पार्टी ने उम्र और लगातार तीन चुनाव लड़ने वालों को टिकट देने में कोई कोताही नहीं बरती है। टिकट पाने वालों में 75 साल से अधिक उम्र की हेमामालिनी के अलावा 70 से अधिक उम्र वाले कई नेता शामिल हैं। पहली सूची में ऐसे 28 सांसद हैं, जो लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ेंगे।