आखिर क्यों विधायक कृष्णानंद राय को चुनौती मानता था माफिया मुख्तार अंसारी…? पढ़ें अदावत से लेकर हत्या तक की पूरी कहानी!

आखिर क्यों विधायक कृष्णानंद राय को चुनौती मानता था माफिया मुख्तार अंसारी…? पढ़ें अदावत से लेकर हत्या तक की पूरी कहानी!

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लखनऊ- विधायक कृष्णानन्द राय और राजू पाल की हत्या पूर्वांचल के गैंगवार की दो बड़ी बानगी हैं. आज विधायक कृष्णानन्द राय हत्याकांड मामले में गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को 10 साल कैद की सजा सुनाते हुए 5 लाख का जुर्माना भी लगाया है. साथ ही इस मामले में आज ही कोर्ट मुख्तार अंसारी के भाई व सांसद अफ़जाल अंसारी पर भी फैसला सुनाएगा. हम आपको विधायक कृष्णानंद राय के हत्याकांड से जुड़ी पूरी कहानी बताते हैं…

विधायक कृष्णानंद राय की हत्या…

दिन मंगलवार और तारीख थी 29 नवंबर 2005…. थाना भंवरकोला के सियाड़ी गांव में बच्चों का एक क्रिकेट मैच था. इसी मैच का उद्घाटन भाजपा के विधायक कृष्णानन्द राय को करना था. विधायक कृष्णानन्द राय अपने पैतृक गांव गोड़डर से मैच का उद्घाटन करने के लिए निकले थे. शायद उन्हे नहीं पता था कि आगे एक बड़ी अनहोनी उनका इंतजार कर रही है.

हमलावरों ने छलनी कर दिया था कृष्णानंद राय का सीना

कृष्णानंद राय का काफिला दोपहर करीब ढाई बजे जगदीशपुर और बमनिया के बीच एक संकरी से पुलिया से गुजर रहा था, तभी असलहा से लैस कई हमलावरों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया. बंदूकधारियों ने विधायक कृष्णानंद राय और उनके साथियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उनका सीना गोलियों से छलनी कर दिया. इस गोली कांड में विधायक कृष्णानन्द राय और उनके 7 साथी मारे गए. यह राजनीतिक हत्या तो थी ही लेकिन इस हत्याकांड के पीछे गैंगवार का एक लम्बा-चौड़ा इतिहास भी है. वर्चस्व की लड़ाई में हुई इन हत्याओं का मतलब सीधे तौर पर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक था.

कृष्णानंद राय-मुख्तार अंसारी के बीच अदावत की वजह

विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड की वजह माफिया मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी को बताया जाता है. मुख्तार और माफिया बृजेश सिंह की अदावत एक लम्बे अरसे चली आ रही थी. कृष्णानंद राय बृजेश सिंह का राजनीतिक चेहरा माने जाते थे. 1996 में कृष्णानंद राय मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट से चुनाव लड़े. यही से कृष्णानंद राय और मुख्तार के बीच अदावत की जंग शुरू हुई.

बृजेश सिंह के करीबी थे विधायक कृष्णानंद राय

माफिया मुख्तार के राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के अलावा कृष्णानंद राय बृजेश सिंह के करीबी भी थे, इन दो बड़ी वजह से वह मुख्तार अंसारी के निशाने पर आ गए. इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के नेता मनोज सिंहा की वजह से भी कृष्णानंद की मुख्तार से दुश्मनी और गहराई. दरअसल भाजपा के मनोज सिंहा मुख्तार के गृह जिले से चुनाव लड़ा करते थे. उन्हें गाजीपुर में भाजपा को मजबूत करने के लिए एक ताकतवर आदमी चाहिए था, लिहाजा वह कृष्णानन्द राय को गाजीपुर ले आए. और यहीं से शुरू हुआ भीषण दुश्मनी का दौर….

कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हराया था चुनाव

कृष्णानन्द राय गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से चुनाव लड़ा करते थे. यहीं से मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी चुनाव लड़ते थे. 1996 में अफजाल अंसारी ने कृष्णानंद राय को चुनाव हरा दिया, लेकिन कृष्णानंद राय ने यहां से भूमिहारों का समर्थन हासिल कर दिया. इस विधानसभा क्षेत्र में भूमिहार मतदाताओं की संख्या अधिक थी. यही कारण है कि 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में अफजाल अंसारी कृष्णानंद राय से चुनाव हार गए. एक तरफ अंसारी परिवार से राजनीतिक मुकाबला और दूसरी तरफ बृजेश सिंह से नाता शायद यही वजह है कि कृष्णानंद राय को यह दुश्मनी भारी पड़ी.

लखनऊ में भी भिड़े थे कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी

कृष्णानन्द राय का विधानसभा क्षेत्र मुहम्मदाबाद भूमिहार बाहु्ल्य इलाका है. यहां कृष्णानन्द राय ने अपना वर्चस्व कायम कर लिया था. यह मुख्तार अंसारी को खल रहा था. कृष्णानन्द राय अंसारी भाइयों को एक बड़ी अड़चन नजर आ रहे थे. यही वजह है कि कृष्णानन्द राय और मुख्तार अंसारी एक दूसरे के जानी-दुश्मन बन गए. दोनों लखनऊ के कैंट इलाके में भी भिड़े और गोलियां कई राउंड गोलियां चलीं. साथ ही 2002 में कृष्णानंद राय से अफजाल के हारने के साथ अदावत और गहरी होती गई.

कृष्णानंद राय 2004 लोकसभा चुनाव में अफजाल के लिए बन गए थे चुनौती

2004 के लोकसभा के चुनाव में अफजाल अंसारी खड़े हुए तो उनके मुकाबले में बीजेपी से मनोज सिन्हा उतरे. कहा जा रहा था कि ये चुनाव प्रत्याशियों के बीच न होकर मुख्तार अंसारी और कृष्णानन्द राय की ताकतों के बीच था. यह साबित भी हुआ, इस चुनाव में जमकर हिंसा हुई. गरीबों की झुग्गियां व वाहनों को आग के हवाले किया गया. तेवर और ताकत के इस चुनाव में मुख्तार अंसारी भारी पड़ा. मनोज सिन्हा अफजाल अंसारी से चुनाव हार गए. लेकिन तब तक कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच अदावत की जंग अपने चरम पर थी…