रायबरेली-डलमऊ में धधक रही हैं अवैध कोयला भट्ठियां, प्रकृति और लोगों की सेहत पर संकट, रेंजर की मेहरबानी पर उठे सवाल

रायबरेली-डलमऊ में धधक रही हैं अवैध कोयला भट्ठियां, प्रकृति और लोगों की सेहत पर संकट, रेंजर की मेहरबानी पर उठे सवाल

-:विज्ञापन:-

रिपोर्ट-ओम द्विवेदी(बाबा)
मो-8573856824

रायबरेली जनपद के डलमऊ क्षेत्र में अवैध कोयला भट्ठियों का जाल बिछा हुआ है। दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों की संख्या में भट्ठियाँ बिना अनुमति और नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए धधक रही हैं। धुएँ के काले गुबार से आसमान ढका रहता है और आसपास के गाँवों में रहने वाले लोग सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं।

 ज्यादा भट्ठियाँ, ज्यादातर अवैध

स्थानीय सूत्रों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार डलमऊ कोतवाली क्षेत्र में करीब 120 कोयला भट्ठियाँ संचालित हो रही हैं। इनमें से अधिकांश के पास न तो लाइसेंस है और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति। चांदपुर लूक गाँव में ही लगभग 35 भट्ठियाँ अवैध रूप से चल रही हैं।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर बड़ा खतरा

लकड़ी समेत अन्य प्रतिबंधित पेड़-पौधों को काटकर इन भट्ठियों में जलाया जाता है, जिससे वन संपदा तेजी से खत्म हो रही है। लगातार निकलने वाला धुआँ लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। बच्चों और बुज़ुर्गों में दमा, खाँसी और फेफड़ों की गंभीर बीमारियाँ बढ़ रही हैं। प्रदूषण स्तर (AQI) खतरनाक श्रेणी तक पहुँच चुका है।

प्रशासन और वन विभाग पर सवाल

हालाँकि कुछ भट्ठियों को सीज करने और तोड़ने की कार्रवाई की गई है, लेकिन बड़ी संख्या में भट्ठियाँ अब भी बेखौफ चल रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय रेंजर और वन विभाग के अधिकारी मौन साधे बैठे हैं। लोगों का कहना है कि बिना अधिकारियों की मेहरबानी के इतने बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार संभव ही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी बेअसर

सुप्रीम कोर्ट ने कोयला भट्ठियों पर रोक लगाने के आदेश जारी किए थे, लेकिन डलमऊ में इन आदेशों की खुलेआम अनदेखी हो रही है। प्रशासनिक उदासीनता और मिलीभगत के चलते पर्यावरणीय अपराध खुलेआम जारी है।

ग्रामीणों की पीड़ा

कोयला भट्ठियों के बीच बसे गाँवों के लोग हर वक्त जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि जब-जब शिकायत की जाती है, थोड़ी-बहुत कार्रवाई दिखाने भर को होती है और फिर भट्ठियाँ पहले से ज्यादा तेज़ी से चालू हो जाती हैं।

सवालों के घेरे में जिम्मेदार

आखिर किन अधिकारियों की शह पर अवैध भट्ठियाँ फल-फूल रही हैं?

क्या वन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सिर्फ कागज़ी कार्रवाई कर रहे हैं?

क्या स्थानीय प्रशासन ने लोगों की जान से जुड़े इस गंभीर संकट पर आँखें मूँद ली हैं?