रायबरेली-एनटीपीसी परियोजना की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और उड़ती हुई राख से गांवों में परोस रहे है गम्भीर बीमारी,,,,,?

रायबरेली-एनटीपीसी परियोजना की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और उड़ती हुई राख से गांवों में परोस रहे है गम्भीर बीमारी,,,,,?

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रिपोर्ट-सागर तिवारी 





ऊँचाहार-रायबरेली- एनटीपीसी परियोजना की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और उड़ती हुई राख आसपास के गांवों में गम्भीर बीमारियों का सबब बन रही है।आसपास के गांवों के लोगों को एनटीपीसी मौत बांट रही है। एनटीपीसी के प्रदूषण से दर्जनों गांव के लोग परेशान हैं। एनटीपीसी दंश गांव के सैकड़ों लोग झेल रहे हैं। उन्हे इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। गांवों में एनटीपीसी की राख अपने पैर पसार कर कहर ढा रही है। कई के परेशान ग्रामीण गांव से पलायन करने को विवश हैं। एनटीपीसी की पीआरओ समेत आला अधिकारी सब ठीक होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं। कागजों पर प्रदूषण मुक्त दिखाकर एनटीपीसी के अफसर उच्चाधिकारियों को गुमराह कर रहे हैं। जबकि हकीकत कागजों से जुदा है। नवागन्तुक महाप्रबंधक कहते हैं राख और धुंआ पर काबू पा लिया गया है। जबकि गांवों में लोग अभी राख फांकने को विवश हैं। राख और धुंवे से खेती बाधित ही रही है। सारे दावे हवा हवाई साबित हो रही है।
       ऊँचाहार एनटीपीसी में बिजली उत्पादन के लिए बनी चिमनियों से निकलने वाला धुंवा और राख ग्रामीणों की जिन्दगी में ज़हर घोल रही है। धुंवा और राख ग्रामीणों में मौत परोस रही है। एनटीपीसी के प्रदूषण से बिकई, बभनपुर, फरीदपुर, बहरेवा, खुर्रमपुर, सरायें सहिजन, पुरवारा, सरायेँ परसू समेत दर्जनों गांव के हज़ारों लोग अधिक प्रभावित है। यहां के सैंकड़ों नौजवानों को दमा, टीवी, खांसी, रतौंधी जैसी गम्भीर बीमारियों ने अपनी आगोश में लेकर मौत के मुंह में ढकेल दिया है। हल्की 
हवा से एनटीपीसी की राख खेतों समेत घरों में घुसकर तबाही मचा देती है। चन्द घंटो में ही छत पर राख की मोटी परत जमा हो जाती है। सूखने के लिए छत फैलाए गए कपड़ों पर कोयले की राख की मोटी परत जमती है और उन्हीं कपड़ों को ग्रामीण धारण करते हैं। इस तरह से हर प्रकार से उनके मुंह, नाक, आँख और कान के रास्ते से शरीर में में प्रवेश करके गम्भीर बीमारियां बांट रही हैं। एनटीपीसी के अधिकारी कहते हैं कि समय समय पर गांवों में नेत्र समेत कई प्रकार के कैम्प लगाकर लोगों की जांच और दवाएं मुहैया कराई जाती है। तो अब सवाल है की जब प्रदूषण ही नही तो कैम्प लागकर जांव और दवाईयां क्यों? खुद बीमारियां बांट कर ख़ुद ही फर्जी दवा और कैम्प लगाकर दवाई क्यूं ? उसके बाद भी हर साल राख के कारण बीमार हुए लोगों की संख्या में इज़ाफा क्यूं, पूरे मामले पर एनटीपीसी प्रबन्धन सब कुछ ठीक होने का ढिंढोरा पीट रही है और उच्चाधिकारी गुमराह हैं यदि समय रहते अहम कदम नहीं उठाए गए तो आगे मौतों का आंकड़ा बेहिसाब होगा। बताते हैं की एनटीपीसी के नवागंतुक महाप्रबंधक कहते हैं। सब ठीक है लेकिन वास्तव में गांव के लोग उनका आने का बेसब्री इंतिजार कर रहे हैं। एनटीपीसी के अधिकारियों का इंतिजार करते हैं कोई आय और हम उनको वास्तविकता से रूबरू करा सकें। कागज़ों पर प्रदूषण मुक्त करने प्रदूषण नहीं खत्म होते। इसके लिए प्रदूषण खत्म करने की ओर सख्त कदम उठाने होंगे।