रायबरेली-अमीट स्याही बनी लेखपाल की कलम जाने कैसे,,,,,,?

रायबरेली-अमीट स्याही बनी लेखपाल की कलम जाने कैसे,,,,,,?

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रिपोर्ट-सागर तिवारी



ऊँचाहार-रायबरेली-उत्तर प्रदेश सरकार की एंटी भूमाफिया सेल को राजस्व कर्मियों के साथ मिलकर भू-माफिया ठेंगा दिखा रहे हैं। शातिर भू माफियाओं ने हरिजनों को मोहरा बनाकर ऊसर की भूमि पर खेल कर के उसे बड़ी क़ीमत बेंच डाला। संपत्तियों पर चलने वाला सरकार का बुल्डोजर इन भूमाफियाओं के गिरेबान में हाथ डालने से कतरा रहा है। भूमाफियाओं ने राजस्व कर्मियों के साथ मिलकर ऐसा जाल बुना है की जिसे पकड़ने में आईएएस और पीसीएस के भी पसीने छूट जायेंगे।

क्या है पूरा मामला:-

ऊँचाहार- तहसील- ऊँचाहार क्षेत्र के ग्राम सभा कन्दरावाँ स्थित गाटा संख्या 1539 रक्बा 0.1520 हे0 में से कस्बा निवासी सरहंग भू माफियाओं ने 13 मार्च वर्ष 2015 को 70×20 फिट का बैनामा बिना विक्रय पत्र अनुमति अपने एक सहयोगी हरिजन से दूसरे हरिजन सहयोगी के नाम बैनामा करवा दिया। मामला एसडीएम न्यायालय की चौखट पर पंहुचा तो मजिस्ट्रेट ने 20 दिसम्बर वर्ष 2018 को बैनामा खारिज करके कुछ रक्बे को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के नाम दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया। जो वर्तमान में भी खतौनी फसली वर्ष 1422 - 1427 के खाता संख्या 092 पर दर्ज है। आरोप है कि भू- माफियाओं ने राजस्व कर्मचारियों से सांठ गांठ करके कूटराचित अभिलेख के आधार पर एक बार फिर बिना अनुमति के अपने नाम बैनामा दर्ज़ करवा लिया। मामले में फिर पेंच फंसा। विक्रेता हरिजन और क्रेता के बिछड़ी जाति होने के चलते अनुमति न होने के अभाव में इसबार भी बैनामा असफल हो गया। भूमाफियाओं का लालच एक बार फिर परवान चढ़ा तो निबंधन कार्यालय में तैनात कर्मचारियों के साथ सांठ गांठ करके कस्बा निवासी अपने करीबी जोखू लाल के नाम 20 अगस्त वर्ष 2019 को इसी भूमि से 70 ✖️ 20 फिट का बैनामा करवा दिया और फिर प्लॉटिंग करके बेंच दिया गया। 

क्या कहा था तत्कालीन लेखपाल ने:-

मामला मीडिया की सुर्खियों में छाया और शिकायत हुई तो तत्कालीन लेखपाल हनुमंत प्रसाद ने 02 नवम्बर वर्ष 2021 में अधिकारियों को गुमराह करने के लिए एक गोल माल करने वाली रिपोर्ट बनाई। जिसमें उन्होंने बताया कि जो भी भूमि का विक्रय किया गया है वह क्रेता के नाम दर्ज है उसने बैनामा दुरुस्त तौर पर किया है। अब समझिए की महोदय ने इसी भूमि पर खेल कर दिया है। विस्तार से समझिए यह भूमि ऊँचाहार से कन्दरावाँ, खरौली होते हुए खागा फतेहपुर को जोड़ने वाले मार्ग पर होने के चलते बेशकीमती है। यह भूमि खतौनी फसली वर्ष 1422-1427 में ऊसर दर्ज है। भूमाफियाओं ने हरिजनों को मोहरा बनाकर कलम के खिलाड़ियों के मिलकर ऐसा मकड़ जाल फैलाया कि आईएएस और पीसीएस को भी इसे समझने में पसीने छूट जाएंगे। फर्जी और कूटरचित अभिलेख के आधार पर ऊसर की भूमि संक्रमणीय भूमि में तब्दील कर दी गई। भूमाफियों ने राजस्व कर्मियों के साथ मिलकर ऐसी कलम घुमाई की राजस्व अधिकारियों को इसपर यकीन मानना पड़ा उन्होंने ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और नाम चढ़वा कर उसका बैनामा अपने करीबी जोखू लाल के नाम करवा दिया।............................. अगले अंक में जारी रहेगा