श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन यशोदा नंदन महराज जी ने सुखदेव के जन्म का वर्णन किया

श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन यशोदा नंदन महराज जी ने सुखदेव के जन्म का वर्णन किया

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रिपोर्ट: केशवानंद शुक्ला 

 प्रयागराज:करछना क्षेत्र के हरदुआ गांव में चल रही श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन रविवार को कथा वाचक यशोदा नंदन महराज जी द्वारा शुकदेव जन्म, परीक्षित श्राप और अमर कथा का वर्णन करते हुए बताया कि सुखदेव जी का जन्म भी एक रहस्यमय तरीके से हुआ था। उन्होंने कहा की जब भगवान शिव पार्वती को अमर होने की कथा सुनाने लगे तो पार्वती माता को हुंकारे भरते भरते उन्हें नींद आ गई। जब शिव अमरत्व की कथा पूरी हुई तो शिव जी ने देखा कि पार्वती माता तो सो रही है, फिर ये हुंकार कौन भर रहा था। उसके बाद भगवान शिव ने देखा की एक तोता वहां बैठा है, जो हुंकारे भर रहा रहा था। भगवान शिव को क्रोध आ गया और बोले की तूने मेरी बिना आज्ञा के अमर कथा का पान किया है। मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा। भगवान शिव त्रिशूल लेकर उसके पीछे दौड़े। शुक यानि तोता अपनी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा। वह वेदव्यास के आश्रम पहुंचा। वहां पर वेदव्यास की पत्नी बाहर कपड़े सूखा रही थीं।उन्हें जभाई आ गई तो तोता सूक्ष्‌म बनकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। भगवान शिव वहां आए और बोले कि मैं इस शुक को जीवित नहीं छोडूंगा। व्यास जी के पूछने पर सारी बात शिव ने बताई। व्यास जी बोले वह अब अमर हो चुका है, आप उसे कैसे मार सकते हैं। आप दयावान हैं। आप उसे क्षमा कीजिए। व्यास जी के अनुरोध पर भगवान शिव का गुस्सा शांत हुआ। व्यास जी की पत्नी के गर्भ में शुकदेव जी को 12 वर्ष हो गए, लेकिन बाहर नहीं निकले। क्योंकि उन्हें डर था अगर मैं संसार में आया तो भगवान की माया के चपेट में आ जाऊंगा।
  वहीं कथा के दूसरे दिन को कथा वाचक यशोदा नंदन महराज जी ने सुखदेव जी के जन्म की कथा श्रवण कराते हुए कहा कि कलयुग में भागवत महापुराण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है। कथा अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान कर जीव को परम पद प्राप्त कराती है।
श्रीमदभागवत पुस्तक नहीं साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है। इसके एक एक अक्षर में भगवान समाए हुए हैं। इस कथा को सुनना दान, व्रत, तीर्थ से भी बढ़कर है। धुंधकारी जैसे महापापी, प्रेतात्मा का उद्धार हो जाता है। मनुष्य से गलती होना बड़ी बात नहीं लेकिन गलती को समय रहते सुधार करना जरूरी है। ऐसा नहीं किया तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है। भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा होनी और श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा दिखाई नहीं देता पर हर किसी में बसता है। हमारे पूर्वजों ने सदैव ही पृथ्वी का पूजन और रक्षा की। इसके बदले पृथ्वी ने मानव का रक्षण किया।
मुख्य यजमान कृष्ण धर द्विवेदी एवं उनकी पत्नी अमरावती द्विवेदी श्रोता गण चंदिका प्रसाद द्विवेदी, विश्व नाथ शुक्ल, मंगल दत्त द्विवेदी, कथा संयोजक रमा शंकर द्विवेदी, श्याम धर द्विवेदी, छंगू लाल,ननकू राम, चिरौंजी लाल जय शंकर, अनिकेत, अनू, शिवा एवं सैकड़ों कि संख्या में श्रोता गण उपस्थित रहे।