Raibareli-जिलाधिकारी का आदेश साबित हुआ बौना चार वर्ष बीत गए रामकली को नही मिला आवास*

Raibareli-जिलाधिकारी का आदेश साबित हुआ बौना चार वर्ष बीत गए रामकली को नही मिला आवास*

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रिपोर्ट-कोशिश जायसवाल माइकल


महराजगंज-रायबरेली-लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने जगह-जगह जनसभाओं में ये संकल्प लिया था कि वह अगर दोबारा देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो 2022 में जब देश आज़ादी का 75वां साल मना रहा होगा, तब तक कोई भी ऐसा परिवार नहीं होगा जिसका अपना खुद का पक्का घर नहीं होगा। साल 2022 बीत रहा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव भी मना चुका है, लेकिन ज़मीनी हकीकत प्रधानमंत्री के वादे से कोसों दूर है। एक ऐसा ही चौकाने वाला  मामला विकास खण्ड अमावां के बघई अहलवार के  गांव का है जहां लगभग चार  वर्ष पूर्व क्षेत्र के दौरे पर आई जिलाधिकारी शुभ्रा सक्सेना ने एक  जर्जर आवास में पति व तीन बच्चों संग रह रही रामकली को पीएम आवास योजना के तहत आवास दिलाने के निर्देश तत्कालीन खंड विकास अधिकारी जेनिथकांत को दिए थे। 
 लेकिन चार वर्ष बाद भी रामकली को आवास मिलना तो दूर उसका नाम तक आवास की सूची में सामिल नही हो सका है। रामकली का भूमिहीन परिवार मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन करता है। जिसकी कच्ची कोठरी व जर्जर छत देख जिलाधिकारी शुभ्रा सक्सेना ने बीडीओ से रामकली को प्राथमिकता देते हुए आवास का लाभ त्वरित दिये जाने के निर्देश दिये थे। लेकिन विकास खण्ड में बैठे लापरवाह अधिकारी कर्मचारियों ने जिलाधिकारी के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए प्रधानमंत्री आवास देना तो दूर लिस्ट में नाम डालना भी मुनासिब नही समझा। इतना ही नही रामकली व उसका पती राम खेलावन कई बार तहसील ब्लाक के चक्कर काट कर थक हार गए लेकिन समस्या सुनने को कोई तैयार नही हुआ।
यह तो एक बानगी मात्र है ऐसे दर्जनों परिवार जो विकास खण्ड में बैठे लापरवाह कर्मचारियों व अधिकारियों की खाऊ कमाऊ नीति के चलते त्रिपालों की झुग्गी झोपड़ियो में अपना व अपने बच्चों का गुजर बसर करने को मजबूर हैं। 
फोटो-

बॉक्स में..
---सबको पक्का मकान प्रधानमंत्री का सिर्फ एक चुनावी वादा नहीं था बल्कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के क्रियान्वन के फ्रेमवर्क में लक्ष्य और उद्देश्य में भी साफ़ साफ़ लिखा है सभी बेघर परिवारों और कच्चे तथा जीर्ण-शीर्ण घरों में रह रहे परिवारों को 2022 तक बुनियादी सुविधायुक्त पक्का आवास का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन, हालात ऐसे हैं कि साल 2022 खत्म होने तक भी यह लक्ष्य दूर-दूर तक पूरा होता नहीं दिख रहा है।