'22 साल लिव-इन में रहने के बाद बलात्कार का आरोप लगाती हो', युवती पर झल्लाया हाई कोर्ट; कहा- एक दो साल भी नहीं.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ उसकी 22 सालों की लिव-इन पार्टनर द्वारा दर्ज बलात्कार का मामला खारिज कर दिया। 14 नवंबर को पारित आदेश में जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि शिकायत में निष्पक्षता नहीं है, क्योंकि यह 22 साल के रिश्ते में खटास आने के बाद दर्ज की गई है।
बार-बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने युवती से कहा कि 22 साल तक एक साथ रहने के बाद, आप बलात्कार का आरोप लगाती हैं। क्या आरोप में निष्पक्षता की कोई झलक है? 22 साल… एक या दो साल नहीं। 22 साल बाद शादी के झूठे वादे पर धारा 376, 417, 420 (आईपीसी) के तहत मामला दर्ज किया जाता है। चार्जशीट दाखिल की जाती है। आप उसके साथ रह रहे थी। पहली नज़र में यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इसलिए, कोर्ट ने व्यक्ति के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) और परिणामी कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
महिला की मुलाकात आरोपी युवक से 2002 में बेंगलुरु में हुई थी। इसके तुरंत बाद उनके बीच रिश्ता बन गया। शिकायत के अनुसार, आरोपी उसे सभी के सामने अपनी पत्नी के रूप में पेश करता था। दोनों तब से साथ रह रहे थे, जब आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया था।
हालांकि, इस साल की शुरुआत में आरोपी अपने पैतृक स्थान चला गया और वहां दूसरी महिला से शादी करने का फैसला किया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद आरोपी के खिलाफ बलात्कार और धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई।
हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक प्रेरित मामला था, जिसमें 22 साल के रिश्ते में खटास आने के बाद बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई गई। इस वर्ष जुलाई में जस्टिस नागप्रसन्ना ने भी मामले में अंतरिम रोक लगा दी थी।
जस्टिस नागप्रसन्ना उस समय कहा था, “यह मामला कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कैसे हो सकता है, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कहा जाता है कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता 22 साल से रिश्ते में हैं। 22 साल के रिश्ते के बाद जब रिश्ता खराब हो जाता है, तो इसे बलात्कार का अपराध माना जाता है। इस मामले में आगे कोई भी कार्यवाही की अनुमति देना पहली नज़र में कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसलिए, आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया जाना चाहिए। 14 नवंबर को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी और संबंधित कार्यवाही को रद्द कर दिया और मामले का निपटारा कर दिया।