पति व पत्नी के बीच अप्राकृतिक सेक्स के लिए क्यों नही ठहराया जा सकता है दोषी हाइकोर्ट ने बताई वजह?

पति व पत्नी के बीच अप्राकृतिक सेक्स के लिए क्यों नही ठहराया जा सकता है दोषी हाइकोर्ट ने बताई वजह?
पति व पत्नी के बीच अप्राकृतिक सेक्स के लिए क्यों नही ठहराया जा सकता है दोषी हाइकोर्ट ने बताई वजह?

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि पति और पत्नी के बीच कोई सेक्सुअल एक्ट धारा 375 के अपवाद 2 के कारण दंडनीय नहीं है, तो पति को धारा 377 के तहत पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स (Unnatural Sex with Wife) के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

जस्टिस रवींद्र मैथानी की बेंच ने अपने फैसले में कहा, "आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को पति और पत्नी के संबंध में आईपीसी की धारा 377 को पढ़ते समय इससे बाहर नहीं निकाला जा सकता। यदि पति और पत्नी के बीच कोई सेक्सुअल एक्ट धारा 375 के अपवाद 2 के कारण दंडनीय नहीं है, तो वही एक्ट धारा 377 के तहत अपराध नहीं हो सकता।"

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बता दें कि धारा 375 के अपवाद 2 के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध से मुक्त किया गया है। इसमें कहा गया है कि "किसी पुरुष द्वारा अपनी 15 साल से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन क्रिया बलात्कार नहीं है"।

नवतेज सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि जो आईपीसी की धारा 375 के तहत अपराध नहीं है, वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं हो सकता है।

हाईकोर्ट ने हरिद्वार के एडिशनल सेशन जज/स्पेशल पॉक्सो जज के एक आदेश में बदलाव हुए यह टिप्पणियां कीं, जिसमें पति को आईपीसी की धारा 377 (अपनी पत्नी के साथ कथित रूप से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए) और धारा 11/12 पॉक्सो एक्ट (अपने बेटे का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने के लिए) के तहत आरोपों का सामना करने के लिए पेश होने को कहा गया था।

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कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा 11/12 के तहत अपराध के लिए याचिकाकर्ता को समन जारी रखने के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 के तहत आरोपों के लिए उसे समन जारी करने के आदेश को रद्द कर दिया।

क्या है पूरा मामला

पति के खिलाफ मामला उसकी पत्नी द्वारा दर्ज कराया गया था, जिसकी शादी दिसंबर 2010 में हुई थी। पत्नी ने दावा किया कि उसके पति ने उसकी इच्छा के विरुद्ध बार-बार अप्राकृतिक सेक्स (गुदा मैथुन) किया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं और ब्लीडिंग हुआ, जिसके लिए उसे कई अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ा। चोटों के बावजूद पति ने शारीरिक हमले और जबरन यौन संबंध बनाने जैसी अपनी हरकतें जारी रखीं।

गौरतलब है कि महिला ने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे अपने लैपटॉप पर अश्लील सामग्री दिखाकर अपने 8 से 10 महीने के बच्चे के साथ गलत व्यवहार किया ताकि पत्नी अप्राकृतिक सेक्स या जबरन ओरल सेक्स जैसी उसकी मांगों के आगे झुक जाए।

एफआईआर में यह भी आरोप लगाया था गया कि पति बहुत अजीब व्यवहार करता था। घर में चीजें फेंकता था और कमरे के सामने पेशाब कर देता था। छोटे बच्चे को अपना निजी अंग दिखाता था और बच्चे के सामने जबरन ओरल सेक्स करता था। पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि पति ने उसे शारीरिक रूप से कष्ट दिए, क्योंकि वह उसे नियमित रूप से पीटता था और उसने उसके साथ अप्राकृतिक सेक्स करना जारी रखा, जिसके कारण उसे फिर से चोटें आईं।

जांच के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई। 8 अप्रैल, 2019 को अदालत ने चार्जशीट पर संज्ञान लिया।

वकीलों ने अदालत में क्या-क्या तर्क दिए

एफआईआर के साथ-साथ समन आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उसके वकील ने मुख्य रूप से निम्नलिखित तर्क दिए।

1. बलात्कार को आईपीसी की धारा 375 के तहत परिभाषित किया गया है। बलात्कार की संशोधित परिभाषा में वह कृत्य शामिल है, जो अन्यथा आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध है। लेकिन पति होने के नाते, याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को देखते हुए इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

2. विवाहित जोड़े के मामले में सेक्स की सहमति सूचित की जाती है और हर बार इसकी जरूरत नहीं होती है। इसलिए, याचिकाकर्ता, जो कि पति है उसके खिलाफ धारा 377 आईपीसी के तहत कोई अपराध नहीं बनता।

वकील ने तर्क दिया कि आरोपी की पत्नी ने अपने पति पर दबाव डालने के लिए एफआईआर में पॉक्सो एक्ट के प्रावधान लगवाए थे, जबकि पति का उनके बच्चे के प्रति यौन संबंध कोई इरादा नहीं था।

वहीं, दूसरी ओर पत्नी के वकील ने कहा कि अप्राकृतिक सेक्स के लिए विवाह के समय सूचित सहमति नहीं हो सकती; कोई भी पत्नी इसके लिए सहमति नहीं देगी। यह भी तर्क दिया गया कि आईपीसी धारा 377 एक अलग अपराध के लिए सजा प्रदान करने वाला एक स्वतंत्र प्रावधान है और पति के पक्ष में कोई अपवाद नहीं करता है। अंत में, यह भी तर्क दिया गया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (2) (ii) के तहत, समलैंगिकता तलाक का आधार होगी।

हाईकोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पति के वकील की दलीलों पर विचार करते हुए सबसे पहले उमंग सिंघार बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि जब आईपीसी की धारा 375 (जैसा कि 2013 संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया है) में पति द्वारा अपनी पत्नी के शरीर में लिंग प्रवेश के सभी संभावित भाग शामिल

शामिल हैं और जब इस तरह के कृत्य के लिए सहमति महत्वहीन है, तो ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है कि आईपीसी की धारा 377 का अपराध उस स्थिति में लागू हो, जहां पति और पत्नी यौन कृत्यों में शामिल हैं।

हाईकोर्ट ने संजीव गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 480 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि मैरिटल रेप से किसी व्यक्ति का संरक्षण उन मामलों में जारी रहता है, जहां उसकी पत्नी की आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है। इस पृष्ठभूमि में, हाईकोर्ट ने माना कि यदि पति और पत्नी के बीच कोई सेक्सुअल एक्ट आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के तहत दंडनीय नहीं है, तो वही एक्ट आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं हो सकता।