अधूरे सफर के सेनानी.. सुनील मिश्रा

अधूरे सफर के सेनानी.. सुनील मिश्रा
अधूरे सफर के सेनानी.. सुनील मिश्रा

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रिपोर्ट-राहुल मिश्रा

शौकिया पत्रकारिता के बाद टेंट का छोटे व्यवसाय के साथ जिंदगी का मुकम्मल सफर शुरू करने वाले सुनील मिश्रा 'सेनानी' उर्फ राजन अधूरा सफर छोड़ कर आज उस अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए जहां से कोई वापस नहीं आता। याद आते हैं वह ढाई दशक पुराने दिन जब अपने गांव टिकरिया से सुनील ने शौकिया पत्रकार बनने के लिए गांव से रायबरेली शहर आना जाना शुरू किया था। वहीं से शुरू हुआ संपर्क का सिलसिला प्रगाढ़ संबंधों में तब्दील होता चला गया। अपने और दिवंगत बड़े भाई के परिवार को संभालने के लिए सुनील ने टेंट व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखा। नाम रखा 'सेनानी टेंट हाउस'। छोटा सा इंफ्रास्ट्रक्चर और पहाड़ सी मेहनत सुनील को आगे बढ़ती चली गई। सुनील के संघर्ष के हम सब शुरुआती साक्षी और साथी दोनों रहे। जहां और जैसे बन पड़ा उनके व्यवसाय में हम सब मददगार के रूप में खड़े रहे। 
वह वर्ष 2004 था जब आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान को गति देने के लिए हम सब ने मिलकर आचार्य स्मृति दिवस का शुभारंभ 'एक शाम बाल का बैरागी के नाम' कार्यक्रम से किया था। उस पहले आयोजन से जुड़ी व्यवस्थाओं का जुम्मा सुनील भाई ने अपने ऊपर ही लिया। वह दिन है और आज का दिन है दो दशक के इस सफर में आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान के हर कार्यक्रम में टेंट कुर्सी डेकोरेशन खाने-पीने और प्लेज़ेंट व्यू होटल बनने के बाद अतिथियों के रुकने की सारी व्यवस्था सुनील भाई अपने सिर पर ही लेते थे। हमें कभी कुछ कहने और बताने की जरूरत नहीं पड़ी। आगे से आगे हर व्यवस्था बेहतरीन तरीके से हमें मिलती रही। पैसे के लिए कभी मुंह खोला न हाथ बढ़ाए। जो दे दिया उसी में संतुष्टि। आचार्य स्मृति दिवस पर सभी अतिथियों के खाने के इंतजाम की हिम्मत सुनील भाई की बदौलत ही हम सब के अंदर जागृत हुई। लागत कीमत पर वह आचार्य स्मृति दिवस में पढ़ने वाले अतिथियों, श्रोताओं‌ और दर्शकों के लिए वह करते रहे। एक से एक देसी व्यंजनों का स्वाद हमने खुद लिया और सब के हिस्से तक अगर पहुंच पाए तो वह सुनील भाई की बदौलत ही।
पत्रकारिता से व्यवसाय, व्यवसाय से सामाजिक और सामाजिक से राजनीति में पदार्पण का फैसला पिछले वर्ष ही सुनील मिश्रा ने काफी सोच-समझ कर लिया। इस निर्णय में उन्होंने हमें भी शामिल किया। राजनीति के माध्यम से समाज सेवा की इच्छा उनकी अपनी नहीं विरासती थी‌ लेकिन कुदरत को जैसे उनके परिवार के लिए राजनीति के माध्यम से सेवा स्वीकार ही नहीं है। राजनीति में पदार्पण के पहले 14 नवंबर 2022 को उन्होंने फेसबुक पर काफी सोच-विचार के बाद एक पोस्ट लिखी जिसका हर एक अक्षर और शब्द उन्होंने हमें पहले पढ़कर सुनाया। उसके बाद पोस्ट किया। उसमें बाबा स्वर्गीय श्री राजदुलारे मिश्रा के स्वाधीनता संग्राम में योगदान से लेकर अचानक देहावसान से सतांव क्षेत्र के विधायक बनते-बनते रह जाने की कथा का वर्णन किया था। फिर पिताजी द्वारा रोजी-रोटी के लिए किए गए संघर्ष के साथ अपने संघर्ष और इरादों को दृढ़ता से समाज के सामने रखते हुए नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए भाजपा से दावेदारी प्रस्तुत की थी। अनुसूचित जाति के लिए नगर पालिका अध्यक्ष का पद रिजर्व होने के बाद बाबा की तरह ही उनकी भी राजनीति के माध्यम से समाज की सेवा की इच्छा अधूरी ही रह गई।
सुनील से संबंध इतना घना था कि वह हमेशा परिवार और समाज के हर सुख दुख साझा करते ही रहते थे। होटल प्लीज़ेंट व्यू की डिजाइन और इंटीरियर पर घंटों चर्चा चलती थी। मात्र 47 वर्ष की अवस्था में धन के अतिरिक्त समाज का विश्वास अर्जन एवं लोकप्रियता उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी। भाजपा की राजनीति में भी उन्हें अपनी मेहनत के बल पर एक मुकाम मिल ही गया था। 
आज जब वह अचानक नहीं रहे तो पिछली बार मित्र मंडली के साथ ब्रज की होली के दिन भी याद आ गए। इस मंडली में सुनील भाई भी थे। उस यात्रा में ब्रज के होरों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक में सुनील काफी जम रहे थे। काफी मस्ती भी की। यमुना नदी में बोटिंग का नजारा भी रह-रहकर याद आने लगा। राधा रानी के मंदिर में भी हम सब ने एक तरह की टीशर्ट पहनकर उसे यात्रा को यादगार बनाने की कोशिश की थी। उस यात्रा की सुखद स्मृतियां आज उनके देवलोक प्रस्थान पर स्वयंमेव ही हिलोरें लेने लगीं। कब? कैसे? किसका? साथ छूट जाए कुछ पता नहीं चलता। मथुरा में ही फिर एक बार ब्रज की होली का आनंद लेने का निर्णय हुआ था लेकिन 2023 में पारिवारिक कारणों से जाना नहीं हो पाया। सुनील भाई के साथ वो यात्रा पहली और आखिरी ही रही। यात्रा के अन्य बहुतेरे अध्याय भी स्मृतियों के अभिन्न हिस्से हैं।