Raibareli-स्त्री विमर्श की गाथा है लघु कथाएं: रमेश बहादुर सिंह

Raibareli-स्त्री विमर्श की गाथा है लघु कथाएं: रमेश बहादुर सिंह
Raibareli-स्त्री विमर्श की गाथा है लघु कथाएं: रमेश बहादुर सिंह

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रिपोर्ट-केशवानंद शुक्ला

लघु कथाएं स्त्रियों के अनसुलझे प्रश्नों का संग्रह है: डॉ. बीना तिवारी
स्त्री की छटपटाहट और अंतर्मन को प्रदर्शित करती है 'लघु कथाएं': पमा मालिक


रायबरेली- कचहरी रोड स्थित एसजेएस पब्लिक स्कूल की शिक्षिका पमा मलिक का एक लघु कथा संग्रह प्रकाशित होने पर स्कूल प्रबंधन ने उन्हें सम्मानित किया है।पमा मलिक पेशे से शिक्षिका है लेकिन शिक्षिका होने के साथ-साथ वह एक कहानीकार भी है। हाल ही में उनका एक कहानी संग्रह 'लघु कथाएं' प्रकाशित हुआ है जो लखनऊ के बीएफसी पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। 104 पन्नों की कहानी संग्रह में स्त्री विमर्श की गाथा है। इस किताब में 10 कहानियां है। कहानियां स्त्री प्रधान है। स्त्री को समझ पाना टेढ़ी खीर है लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति नजदीक जाता है परतें खुलती जाती है और स्त्री के अनपेक्षित विविध रूपों के


 दर्शन होने लगते हैं। प्रस्तुत कहानियों में स्त्री रहस्य, उसके अनसुलझे प्रश्न,उसकी अस्वीकृत मनोभाव, अनछुए पहलू उसकी अधूरी आकांक्षाएं, अपेक्षाएं और अंतर्मन की छटपटाहट को प्रदर्शित किया गया है।
स्कूल में आज एक समारोह में शिक्षिका पमा मलिक को सम्मानित किया गया। एसजेएस ग्रुप ऑफ स्कूल्स के चेयरमैन श्री रमेश बहादुर सिंह ने उन्हें सम्मानित करते हुए कहा कि स्कूल के लिए बड़ी उपलब्धि है। पमा मालिक शिक्षिका होने के साथ-साथ एक साहित्यकार भी है। स्कूल के कामों को बेहतर ढंग से करने के बाद बचे समय को साहित्य में लगा देना बड़ी बात है।इसके लिए पमा मलिक बधाई की पात्र हैं।
स्कूल की प्रधानाचार्य डॉ बीना तिवारी ने पमा मलिक को सम्मानित करते हुए कहा कि गर्व का विषय है कि ऐसे शिक्षक हमारे स्कूल में हैं। इससे हमारे बच्चों में साहित्यिक अभिरुचि विकसित होगी।
शिक्षिका पमा मालिक ने बताया स्कूल से जो भी वक्त मिलता था उसको मैं कहानियों लिखने में बिताती थी । उनका कहना है कि बचपन से ही उन्हें लिखने पढ़ने का बहुत शौक हुआ करता था। लोटपोट और पराग में उनकी कहानियां छपती रहती थी। वहीं से लेखन के प्रति इनकी रुचि जगी और अभी तक 70 से अधिक कहानियां विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में छप चुकी है।

40 रुपये ने दी प्रेरणा

1984 में लोटपोट में प्रकाशित एक कहानी 'दादा जी' के लिए उन्हें जब 40 रुपये का पुरस्कार मिला उसके बाद उन्हें कहानी लिखने के लिए काफी प्रेरणा मिली और उसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज 70 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियां छप चुकी है।

स्कूल प्रबंधन और परिवार को दिया सफलता का श्रेय

पमा मालिक ने अपनी सफलता का श्रेय  स्कूल प्रबंधन और अपने परिवार को दिया है। उनका कहना है कि स्कूल ने कभी उन पर दबाव नहीं डाला और हमेशा लिखने के लिए प्रेरित किया है। घर पर भी जब मैं लिखने बैठती थी तो मेरे परिजन बहुत हौसला अफजाई करते थे। यही वजह है किआज मेरी किताब प्रकाशित हुई है।