करहल में सपा मांगे मोर. अखिलेश यादव की जीत का रिकॉर्ड तोड़ने पर तुले तेज प्रताप

करहल में सपा मांगे मोर. अखिलेश यादव की जीत का रिकॉर्ड तोड़ने पर तुले तेज प्रताप

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को उपचुनाव है. सपा का गढ़ माने जानी वाली इस सीट पर अखिलेश ने अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को उतारा है.

उनके सामने बीजेपी से अनुजेश यादव और बसपा से अवनीश शाक्य ताल ठोक रहे हैं. करहल की लड़ाई सैफई परिवार के दो यादवों के बीच है. ऐसे में सपा अपनी जीत को लेकर फुल कॉफिडेंस में नजर आ रही है और उसकी कोशिश अखिलेश यादव से बड़ी जीत तेज प्रताप यादव को दिलाने की है. इसके लिए सपा ने सियासी तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है ताकि 2022 में मिली जीत के रिकॉर्ड को तोड़ा जा सके.

अखिलेश यादव ने अपने ढाई दशक के सियासी सफर में पहली बार विधानसभा का चुनाव 2022 में करहल सीट से लड़ा था. करहल से अखिलेश विधायक चुने गए थे. अखिलेश ने बीजेपी के एसपी सिंह बघेल को मात दी थी. 2024 में कन्नौज से सांसद बनने के बाद करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. अब करहल सीट पर उपचुनाव हो रहा है. सपा के लिए मुफीद माने जाने वाली विधानसभा सीट पर अखिलेश ने पूर्व सांसद तेज प्रताप को उतारा है, जो बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं. सपा के सांसद धर्मेंद्र यादव के बहनोई अनुजेश यादव को बीजेपी ने उतारकर करहल के मुकाबले को रोचक बना दिया है.

2022 में करहल विधानसभा सीट पर अखिलेश यादव को 1 लाख 48 हजार 197 वोट मिले थे. जबकि बीजेपी प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को 80 हजार 692 वोट मिले थे. बसपा प्रत्याशी कुलदीप नारायण को 15 हजार 701 वोट मिले थे. अखिलेश बसपा प्रत्याशी कुलदीप नारायण को 15 हजार 701 वोट मिले थे. अखिलेश ने 67 हजार 504 वोटों से जीत दर्ज की थी. करहल सीट पर अब तक के सबसे बड़े मार्जिन से अखिलेश को जीत मिली है. इससे पहले सपा को औसतन 30 हजार वोटों से जीत मिलती रही है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि तेज प्रताप यादव क्या करहल में अखिलश के रिकॉर्ड को तोड़ पाएंगे?

करहल सीट का सियासी गणित

करहल विधानसभा सीट पर करीब सवा तीन लाख वोटर हैं, जिसमें सवा लाख के करीब यादव मतदाता हैं. इसके बाद दलित समाज 40 हजार और शाक्य समुदाय के 38 हजार वोट हैं. पाल और ठाकुर समुदाय के 30-30 हजार वोटर हैं तो मुस्लिम वोटर 20 हजार हैं. ब्राह्मण-लोध-वैश्य समाज के वोटर 15-15 हजार के करीब हैं. करहल में यादव के बाद दलित और शाक्य मतदाता हैं तो वहीं बघेल और ठाकुर वोटर अहम है. शाक्य और क्षत्रिय मतदाता करहल सीट पर बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है.

बीजेपी ने यादव समीकरण को देखते हुए यादव समुदाय से ही नहीं बल्कि मुलायम परिवार के दामाद को कैंडिडेट बनाकर बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. सपा के सामने अपना सियासी गढ़ और अखिलेश यादव की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने की चुनौती बल्कि मुलायम परिवार के दामाद को कैंडिडेट बनाकर बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. सपा के सामने अपना सियासी गढ़ और अखिलेश यादव की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने की चुनौती है. 2022 में अखिलेश के खिलाफ बीजेपी ने एसपी बघेल को उतारकर पाल समुदाय के वोटों को अपने पक्ष में कर लिया था. इस बार यादव प्रत्याशी होने के चलते सपा की नजर पाल, शाक्य, लोध, शाक्य और दलित समुदाय के वोटों को पाले में लाने की है. इसके लिए सपा ने अपना सियासी तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है.

सपा का बड़ा सियासी दांव

करहल में जातीय समीकरण को साधने के लिए सपा ने अखिलेश कश्यप, अविहरन सिंह जाटव और ब्राह्मनंद शाक्य को पहले तेज प्रताप यादव का प्रस्तावक बनाकर बड़ा सियासी दांव चला. सपा अलग-अलग जातियों के वोट साधने के लिए अपने तमाम दिग्गज नेताओं को रणनीति के तहत लगा रही है. करहल सीट पर सपा के प्रभार देख रहे विधायक अताउर्रहमान ने टीवी-9 डिजिटल से बताया कि तेज प्रताप यादव की जीत निश्चित है लेकिन हमारी कोशिश 2022 में मिली जीत के रिकॉर्ड को तोड़ने की है. इसके लिए पूरी रणनीति के साथ काम कर रहे हैं और अलग-अलग जातियों के बीच उनके बड़े नेताओं को लगाया गया है.

अताउर्रहमान ने कहा, सपा करहल में पीडीए फॉर्मूले को एकजुट करने में लगी है. यादव वोट पूरी तरह से सपा के साथ खड़ा है और शाक्य समुदाय से लेकर पाल और लोध समुदाय का भी समर्थन मिल रहा है. शाक्य समुदाय के बीच एटा के सांसद देवेश शाक्य और फर्रुखाबाद से सपा प्रत्याशी नवल किशोर शाक्य को लगाया गया है. इसके अलावा मैनपुरी के जिला अध्यक्ष आलोक शाक्य ने पहले ही कमान संभाल रखी है. सपा सांसद बाबू सिंह कुशवाहा को भी जिम्मेदारी दी गई है. करहल सीट के तहत आने वाले सभी चारों ब्लॉक में इन सभी नेताओं के कार्यकम रखे गए हैं, जिनके ज्यादातर कार्यक्रम शाक्य बहुल गांवों में कराए जा रहे हैं.

बूथ स्तर पर टीम तैयार

सपा ने शाक्य समुदाय की तर्ज पर पाल समुदाय के वोटों को भी साधन के लिए अपने प्रदेश अध्यक्ष श्याम पाल को लगाया गया है. बीजेपी से बघेल समुदाय का प्रत्याशी न होने से पाल समाज का वोटों का झुकाव सपा की तरफ तेजी से हो रहा है. श्याम पाल लगातार कैंप किए हुए हैं और चार दिन का उनका कार्यक्रम है. इसी तरह से लोध समुदाय के वोटों को सपा के पक्ष में करने के लिए हमीरपुर के सांसद अजेंद्र सिंह राजपूत को लगाया गया है. अजेंद्र सिंह लोध समुदाय से आते हैं, जिसके चलते लोध वोट जोड़ने का जिम्मा है. इसी तरह सपा ने ठाकुर और ब्राह्मण के साथ दलित वोटों को भी जोड़ने के लिए उनके समुदाय के बड़े नेताओं को लगाया गया है.सपा विधायक अताउर्रहमान बताते हैं, शिवपाल यादव, धर्मेंद्र यादव के अलावा आदित्य यादव के लगातार करहल में कार्यक्रम लगे हुए हैं. मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव ने करहल में पूरी तरह से कैंप कर रखा है और हर दिन आठ से दस कार्यक्रम कर रही हैं. वह बताते हैं कि बाहर से जो भी सपा के नेता करहल में प्रचार के लिए आ रहे हैं, उन्हें स्थानीय नेताओं के साथ लगाया जा रहा है. करहल सीट को कई सेक्टर में बांटकर चुनावी रणनीति तैयार की है, जिसके जरिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा सपा का पूरा फोकस मतदान के दिन ज्यादा से ज्यादा वोटिंग कराने पर है, जिसके लिए बूथ स्तर पर एक टीम तैयार कर रखी है. हर एक बूथ पर दस-दस सदस्यों की टीम बनाई गई है, जो वोटर्स को घर से निकालकर मतदान केंद्र तक ले जाने का जिम्मा संभालेंगे.

सपा को करहल में उम्मीद

करहल में यादव मतदाता सबसे ज्यादा हैं, जो सपा के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. बीजेपी के कैंडिडेट यादव समुदाय से होने के बावजूद सपा को करहल में उम्मीद है कि यादव समाज का 90 फीसदी वोट तेज प्रताप यादव को मिलेगा. पाल समुदाय से बीजेपी का कैंडिडेट न होने के चलते पाल समाज का झुकाव भी उसकी तरफ हो सकता है. सपा यह मानकर चल रही है कि करहल में बसपा रेस में नहीं है, जिसके चलते शाक्य वोटों और दलित

वोटों को भी सपा साधने में जुटी है. सपा ने तेज प्रताप यादव के प्रस्तावकों के जरिए करहल के जातिगत समीकरण तक ध्यान रखा है. प्रस्तावक में शाक्य-दलित-कश्यप समीकरण बनाने की कोशिश की है. तीनों ही जातियों से एक-एक प्रस्तावक रखे गए हैं.

करहल का चुनाव अब सपा बनाम बीजेपी नहीं, बल्कि यादव बनाम यादव की लड़ाई बन गया है. ऐसे में मतदाताओं का झुकाव सपा की तरफ ज्यादा दिखाई दे रहा है. हालांकि, बीजेपी ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है. सपा की ओर से अखिलेश यादव ने खुद कमान संभाल रखी है, लेकिन चुनावी रणनीति अलग बिछा जा रही. ऐसे में करहल में देखना है कि अखिलेश यादव के जीत का रिकॉर्ड तेज प्रताप यादव तोड़ पाते हैं या फिर नहीं?