रायबरेली- भगवान शिव की चेतना का अटल स्वरूप हर आत्मा में अंतर्निहित है - सत्यांशु जी महराज

रायबरेली- भगवान शिव की चेतना  का अटल स्वरूप हर आत्मा में अंतर्निहित है - सत्यांशु जी महराज

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रिपोर्ट- सागर तिवारी

ऊंचाहार , रायबरेली - क्षेत्र के गांव कोल्हौर मजरे पट्टी रहस कैथवल में चल रहे शिव महापुराण कथा के दूसरे दिन कथा वाचक सत्यांशु जी महराज ने भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों के महात्म की व्याख्या करते हुए कहा कि “ज्योतिर्लिंग” सबसे दिव्य और रहस्यमयी प्रतीक माने जाते हैं। “ज्योति” का अर्थ है प्रकाश, और “लिंग” का अर्थ है चिन्ह। अर्थात, ज्योतिर्लिंग वह प्रकाश-स्वरूप चिन्ह है जिसमें भगवान शिव स्वयं अनंत ऊर्जा के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 
    उन्होंने कहा कि भगवान शिव संसार के सभी प्राणियों के कल्याण हेतु सदा तीर्थों में भ्रमण करते रहते हैं। वे जहां-जहां जाते हैं, वहां लिंग रूप में निवास करते हैं। उन्होंने बताया कि द्वादश शिवलिंग केवल पत्थर का टुकड़ा नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक शक्ति का केन्द्र है, जहाँ शिव न केवल पूजे जाते हैं, बल्कि अनुभव किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि ज्योतिर्लिंग  चेतना का वह अटल स्वरूप जो हर आत्मा में अंतर्निहित है। शिवभक्तों के लिए, शिव की भक्ति केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन का पथ है। 
उनकी भक्ति कोई औपचारिक अनुष्ठान मात्र नहीं, बल्कि एक आंतरिक साधना है — आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा। शिवलिंग, वास्तव में, शिव के ब्रह्मस्वरूप का प्रतीक है। जो शिव को लिंग रूप में देखता है, वह केवल प्रतीक नहीं, बल्कि सत्य को अनुभव करता है — वह सत्य जो समस्त सृष्टि में व्यापी है, जो हमारे भीतर भी है और ब्रह्मांड के हर कण में भी। इस मौके पर मुख्य यजमान राजा चौरसिया के अलावा गंगा प्रसाद चौरसिया, हरिशरण सिंह, आजाद चौरसिया, सचिन चौरसिया, राघव, अजय पाण्डेय, शिवकेश पाण्डेय, संजय सोनी, दीपू मौर्य आदि उपस्थित रहे ।