किन राज्यो में लग सकता है BJP को झटका ???
चौथे चरण की वोटिंग तक उत्तर प्रदेश की 39 सीटों पर चुनाव हुआ है| बाकी 41 सीटों पर चुनाव होना बाकी है| विपक्ष ऐसा मान कर चल रहा है कि वह 25 सीटें जीत रहा है, जबकि एनडीए 55 सीटों पर अटक जाएगी| कांग्रेस समर्थक एक अखबार ने दावा किया है कि भाजपा को 54 सीटें मिलेंगी और उसका सहयोगी सिर्फ एक सीट जीत पाएगा|
वैसे तो हर कोई यह मान कर चल रहा है, बल्कि भाजपा के भीतर भी यह माना जा रहा है कि भाजपा को उसके गढ़ राजस्थान में कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है| इसके अलावा भाजपा को बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी नुकसान होने का अनुमान है| एनडीए को कुल नुकसान 30 सीटों तक का हो सकता है, जिसमें भाजपा की 15 तक सीटें तक कम हो सकती हैं|
लेकिन कांग्रेस का अंदरुनी आकलन देने वाले अखबार ने लिखा है कि एनडीए को बिहार में 16 सीटों का, कर्नाटक में 15 सीटों का और महाराष्ट्र में 24 सीटों का नुकसान हो सकता है| यह एनडीए को 30 सीटों के नुकसान के भाजपा के आकलन के मुकाबले 55 सीटों का नुकसान बता रहा है| इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी एनडीए को 9 सीटों का नुकसान बताया है| आम धारणा और भाजपा के अपने आकलन के विपरीत कांग्रेस का राजस्थान में चार, और हरियाणा में पांच सीटें जीतने का आकलन है|
राजनीतिक दलों के अपने आकलन अमूमन पार्टी काडर के फीडबैक पर आधारित होते हैं, जो अक्सर गलत साबित होते है| वैसे भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी अब यह दावा नहीं कर रहा कि वे 370 सीटें जीतने जा रहे हैं, या एनडीए 400 का आंकड़ा छूने वाला है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अब अपनी रैलियों में अबकी बार चार सौ पार का नारा नहीं लगवा रहे, बल्कि "एक बार फिर मोदी सरकार" के नारे लगवा रहे हैं|
नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि सत्रहवीं लोकसभा में भी एनडीए और एनडीए के सहयोगियों के पास 400 का आंकड़ा था, इसलिए उन्होंने कोई बहुत बड़ा टार्गेट सेट नहीं किया है कि जिसे हासिल नहीं किया जा सकता हो| नरेंद्र मोदी ने जब सत्रहवीं लोकसभा के आंकड़े का जिक्र किया तो उन्होंने एनडीए की 353 सीटों में बीजू जनता दल की 12, वाईएसआर कांग्रेस की 22 और टीडीपी की तीन सीटें भी जोड़ी थीं, जो पिछले पांच साल करीब करीब हर बिल पर उनकी सरकार के साथ खड़ी दिखाई दी थी|
इस लोकसभा चुनाव में टीडीपी तो एनडीए में शामिल हो कर चुनाव लड़ रही है, लेकिन वाईएसआर और बीजू जनता दल साथ चुनाव नहीं लड़ रहे| यह बात अलग है कि चुनाव के बाद कांग्रेस से दूरी बनाने वाले ये दोनों दल मोदी सरकार को फिर से समर्थन दे सकते हैं, लेकिन इन दोनों ही दलों की स्थिति सत्रहवीं लोकसभा के मुकाबले कमजोर होने वाली है|
मोदी जब टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल को साथ जोड़ कर 400 का टार्गेट सामने रखने की बात करते हैं, तो मोदी का टार्गेट कोई बहुत बड़ा नहीं दिखता| इसमें कोई संदेह नहीं लगता कि भाजपा बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में होने वाले संभावित 30 सीटों के नुकसान की भरपाई उड़ीसा, बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पूर्वोतर के आठ राज्यों से होने का अनुमान लगा कर चल रही है|
भाजपा का उड़ीसा में आठ से बढ़ कर 15, बंगाल में 18 से बढ़कर 24, आंध्र प्रदेश में टीडीपी, जन सेना और भाजपा मिल कर 25 में से 20-22 सीटें जीतने का आकलन है, जबकि तेलंगाना से भाजपा को चार से बढ़कर आठ सीटें जीतने का आकलन है| पूर्वोत्तर में पिछली बार भाजपा को 25 में से 15 सीटें मिली थीं, भाजपा एनडीए को 20 सीटें मिलने का अनुमान लगा रही है| बंगाल को लेकर परस्पर विरोधी दावे हैं, लेकिन आंध्र, तेलंगाना और उड़ीसा को लेकर किसी को कोई भ्रम नहीं कि इन तीनों ही राज्यों में भाजपा और एनडीए पहले से मजबूत होने जा रहा है| भाजपा छत्तीसगढ़ और झारखंड में बेहतर नतीजों की उम्मीद कर रही है|
कांग्रेस को दक्षिण के चार राज्यों केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना से बहुत उम्मीदे हैं| केरल में एलडीएफ और यूडीएफ जितनी भी सीटें जीतेंगे, वे सब इंडी एलायंस में जाएँगी और कांग्रेस का आकलन है कि सभी 20 सीटें दोनों मोर्चे जीतने जा रहे है, वहां भाजपा का खाता भी नहीं खुलेगा| इसी तरह तमिलनाडु की भी सभी 39 सीटें इंडी एलायंस अपने खाते में मान रहा है| कांग्रेस के हिसाब से अन्ना द्रमुक या भाजपा के गठबंधन को एक भी सीट नहीं मिलेगी| कर्नाटक में कांग्रेस का आकलन 28 में से 18 सीटें जीतने का है, इसी तरह तेलंगाना में उसका आकलन 17 सीटों में से 15 सीटें जीतने का है, जबकि कांग्रेस के हिसाब से भाजपा की सीटें चार से घटकर दो हो जाएँगी और भारत राष्ट्र समिति खाता भी नहीं खोल पाएगी| ये दोनों राज्य कांग्रेस पिछले एक साल में जीती है|
दोनों ही पक्षों के लिए सबसे ज्यादा अहम है उत्तर प्रदेश| उत्तर प्रदेश को लेकर दोनों पक्षों की ओर से परस्पर विरोधी दावे और आकलन है| पिछले लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिल कर चुनाव लड़ा था, तब भाजपा की सीटें 71 से घटकर 62 हो गई थी, जबकि उसके सहयोगी अपना दल ने अपनी दोनों सीटें बरकरार रखी थी|
उस गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा बसपा को मिला था, जिसकी सीटें शून्य से दस हो गई थीं| समाजवादी पार्टी भले ही अपनी पांच सीटें बरकरार रख पाई थी, लेकिन उसका वोट 2014 के मुकाबले 4.24 प्रतिशत घटकर 18.11 प्रतिशत रह गया था, और यह इसके बावजूद हुआ था कि मुलायम सिंह ज़िंदा थे और जो पांच सीटें सपा जीती थीं, उनमें से एक पर खुद
मुलायम सिंह और एक पर खुद अखिलेश यादव जीते थे| कांग्रेस का वोट भी घटकर सिर्फ 6.36 प्रतिशत रह गया था|
कांग्रेस- सपा मिल कर इस बार 80 में से 25 जीतने का दावा कर रहे हैं| कांग्रेस ऐसा दावा कैसे कर रही है, जबकि उसकी सहयोगी सपा 2019 के मुकाबले कमजोर हुई है| राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा और निषाद पार्टी के बाद महान दल और जनवादी पार्टी ने भी सपा से अलग हो कर भाजपा का दामन थाम लिया है| अपना दल कमेरावादी पार्टी ने भी सपा का दामन छोड़ दिया है| ये सभी छोटे छोटे दल अलग अलग पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करती हैं|
इन सभी पार्टियों के कारण सपा को विधानसभा चुनावों में फायदा मिला था, जो इस बार सपा के बजाए भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं| लेकिन कांग्रेस दावा कर रही है कि भाजपा उत्तर प्रदेश की 62 सीटों में से 26 सीटें बहुत ही कम अंतर से जीती थीं, उन 26 सीटों पर कांग्रेस - सपा गठबंधन पूरा जोर लगा कर चुनाव लड़ रही हैं| लेकिन इसमें बसपा का एंगल भी है, जिसने पिछली बार सपा को समर्थन दिया था, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले उम्मीदवार खड़े किए हैं|
कांग्रेस का मानना है कि अगर कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश से उसके आकलन के मुताबिक़ नतीजे आ गए तो लोकसभा में एनडीए को बहुमत नहीं मिलेगा, अलबत्ता त्रिशंकु लोकसभा बनेगी| लेकिन सवाल पैदा होता है कि जब दोनों गठबन्धनों में शामिल न होने वाले बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति लगभग खत्म हो रहे हैं, तो त्रिशंकु लोकसभा कैसे आएगी| दूसरी तरफ भारतीय
जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना 71 का आंकड़ा हासिल होने और सहयोगी के तौर पर पांच सीटों पर चुनाव लड़ रहे सभी पाँचों के जीतने की उम्मीद लगाए हुए है|
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति R.Express News उत्तरदायी नहीं है।)