सदियों पुराना है भारत का योग…इस लोक से योग को जोड़ने में गुरु गोरक्षनाथ की विशेष भूमिका
लखनऊ- भारतीय परंपरा में रचे-बसे योग को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है. पर योग को इस लोक से जोड़ने का श्रेय नाथ पंथ के आदि गुरु गोरक्षनाथ को जाता है. उनके बाद के नाथ योगियों के सिद्धों एवं साधकों ने शरीर को स्वस्थ, मन स्थिर एवं आत्मा को परमात्मा में प्रतिष्ठित करने वाली इस विधा को लोक तक पहुचांया.फिर तो योग जाति, धर्म, मजहब, लिंग और भौगोलिक सीमाओं से परे सबके लिए उपयोगी होता गया.आज पूरी दुनिया योग को इसी रूप में स्वीकार भी कर रही है.अंतराष्ट्रीय योग दिवस इसका प्रमाण है.
कहा गया है कि हिंदू धर्म, दर्शन,अध्यात्म और साधना से जुड़े संप्रदायों में नाथ पंथ का महत्वपूर्ण स्थान है. बृहत्तर भारत समेत देश के हर क्षेत्र में नाथ योगियों-सिद्धों की उपस्थिति इस संप्रदाय की व्यापकता और इसी अनुरूप इसके प्रभाव का सबूत है.
नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति आदिनाथ भगवान शिव से मानी जाती है. आदिनाथ शिव से मिले तत्त्वज्ञान को मत्स्येंद्रनाथ ने अपने शिष्य गोरक्षनाथ को दिया. माना जाता है की गुरु गोरक्षनाथ शिव के ही अवतार थे. गुरु गोरक्षनाथ का अपने समय में भारतवर्ष समेत एशिया के बड़े भूभाग (तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफगानिस्तान, श्रीलंका) व्यापक प्रभाव था.उन्होंने अपने योग ज्ञान से इन सारी जगहों को कृतार्थ किया.
योग ही श्रेष्ठ पथ है- जॉर्ज गियर्सन
जॉर्ज गियर्सन के अनुसार गोरखनाथ ने लोकजीवन का परमार्थिक स्तर पर उत्तरोत्तर उन्नयन और समृद्ध कर निष्पक्ष,आध्यात्मिक क्रांति का बीजारोपण कर योग रूपी कल्पतरु की शीतल छाया में त्रयताप से पीड़ित मानवता को सुरक्षित कर जो महनीयता प्राप्त की वह उनकी अलौकिक सिद्धि का परिचायक है.
गोरक्षनाथ का योगमार्ग शुष्क विचारत्मक नहीं साधनापरक है. इस बाबत उनका कहना है कि “ज्ञान सबसे बड़ा गुरु और चित्त सबसे बड़ा चेला है.गुरु गोरक्षनाथ द्वारा प्रतिपादित योग का इसलिए भी महत्व है क्योंकि उन्होंने योग को वामाचार से निकालकर इसे सात्विक,सदाचार और सद्विचार के रूप में प्रतिष्ठित किया. उन्होंने योग के संबंध में अब तक की अतियों से बचने पर जोर दिया.
गोरक्षनाथ के योग की सबसे बड़ी खूबी
एलपी टेशीटरी के मुताबिक गोरखनाथ के योग की खूबी इसकी सर्वजनीनता है.मसलन उनके योग का द्वार सबके लिए खुला है.ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ नाथ के मुताबिक योग साधना सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए है.उनके मुताबिक अपनी इस परंपरा और सांस्कृतिक थाती को सुरक्षित रखने के लिए पीठ प्रतिबद्ध है.
इसी उद्देश्य से गुरु गोरक्षनाथ ने योग को लोककल्याण से जोड़ा.योग मानवता के कल्याण का जरिया बने. हर कोई इसकी उपयोगिता को जाने. इसके जरिए तन को स्वस्थ, मन को स्थिर करें, इसके लिए गुरु गोरखनाथ ने संस्कृत और लोकभाषा दोनों में साहित्य की रचना की.
योग की परंपरा को आगे बढ़ाने में गोरक्षपीठ की अहम भूमिका
गोरखपीठ इस परंपरा को लगातार आगे बढ़ा रहा है. वहा महायोगी गुरु गोरक्षनाथ संस्थान द्वारा प्रशिक्षित योग गुरुओं के सानिध्य और मार्गनिर्देशन में इच्छुक लोगों को योग के सैद्धांतिक पक्ष की जानकारी देते है.ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ और अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि समारोह और अब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर भी यह सिलसिला चलता है.करीब हफ्ते भर चलने वाले पुण्यतिथि समारोह के दौरान देश के ज्वलंत मुद्दों पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के एक दिन का विषय योग ही होता है.
“योग” भारत की थाती है. यह उतना ही प्राचीन है जितनी भारतीय संस्कृति. हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गीता, रामायण, महाभारत, शिव संहिता, गोरक्ष संहिता, घेरण्ड संहिता, सहित कई जगहों पर योग का जिक्र मिलता है. यहां तक कि दुनियां की प्राचीनतम संस्कृतियों में शुमार मोहन जोदड़ो और मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी पर बसे प्राचीन महिष्मति के पुरावशेषों में भी योग के प्रमाण मिलते हैं.