देवरिया में BSP की सोशल इंजीनियरिंग जारी…नहीं उतारा प्रत्याशी
लोकसभा चुनाव में गठबंधन से बदले राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर बहुजन समाज पार्टी ने भी अपनी रणनीति तैयार कर ली है । बहुजन समाज पार्टी देवरिया में बूथ स्तर तक अपने संगठन को मजबूत बनाने में जुटी है। पार्टी के सूत्रों की माने तो बसपा SP के मुस्लिम और भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर फोकस कर रहीं है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा नंबर एक पर थी। यही वजह है कि जिले में अभी तक पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
2009 में मिली थी सफलता
एक दौर था जब बसपा का टिकट जीत की गारंटी माना जाता था। भाईचारा कमेटियों की बदौलत हर जाति और हर धर्म में पार्टी की गहरी पैठ बन गई थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में देवरिया जिले की 07 विधानसभा सीटों में से 03 सीटों पर बसपा ने अपना कब्जा कर लिया था। 2009 के चुनाव में देवरिया जिले में पहली बार बसपा का खाता खुला व जनपद की दोनों लोकसभा सीटों पर बसपा ने जीत हासिल किया था। यही नहीं जिले के सभी ब्लॉकों के प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष भी बसपा के ही हुये थे।
गिरता गया वोट प्रतिशत
2007 के विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरता गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में जिले की दोनों लोकसभा सीटों पर बसपा को कुल 06 लाख 85 हजार 04 सौ 77 वोट मिले। जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में जिले की सभी सातों विधानसभा सीटों पर बसपा को मात्र 01 लाख 63 हजार 07 सौ 89 वोट ही मिला। लगातार गिरते वोट प्रतिशत के चलते पार्टी के नेताओं ने दूसरे दलों की राह पकड़ ली।
जातीय समीकरण से उम्मीदवार
बसपा के रणनीतिकारो की माने तो देवरिया व सलेमपुर लोकसभा सीट पर विपक्षियों को टक्कर देने के लिए प्रत्याशी उतारा जाएगा। प्रत्याशी चयन में जातीय समीकरणों विशेष ध्यान रहेगा। टिकट के लिए कई नेता लाईन में है। गठबंधन से कांग्रेस से प्रत्याशी अखिलेश प्रताप सिंह को बनाया गया है तो वहीं भाजपा ने आज रमापति राम त्रिपाठी का टिकट काटकर शशांक मणि त्रिपाठी पर अब भरोसा जताया है। अब देखना है कि बसपा का सोशल इंजीनियरिंग वाला पुराना फॉर्मूला लोकसभा के चुनाव में कितना कारगर होता है।