बीजेपी नें जातीय समीकरण देखते हुए उतारा उम्मीदवार, अब डिंपल को इन चुनौतियों से पाना होगा पार
उत्तर प्रदेश में तीन सीटों पर उप चुनाव होने को है. मैनपुरी, रामपुर और मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर उपचुनाव दिसंबर की 5 तारीख को होने है. इन तीनों सीटों पर सबकी नज़र है लेकिन चर्चा का विषय जो सीट बनी है वो है मैनपुरी की लोकसभा सीट. इस सीट से सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव सांसद थे. उनके निधन के कारण ये सीट खाली हुई थी. इस पर उप चुनाव होने है.
इस सीट पर जीतने वाला व्यक्ति 2024 तक सांसद होगा. दोनों सीटों पर प्रत्याशियों के चयन के लिए सपा और भाजपा ने लंबा मंथन किया. सपा ने मुलायम सिंह की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को प्रत्याशी बनाया है. उन्होंने कल अपना नमांकन भी किया. नमांकान के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि यहां से डिंपल की जीत ही नेताजी को सच्ची और बड़ी श्रद्धांजलि होगी.
कड़े और बड़े मंथन के बाद आज बीजेपी ने भी प्रत्याशियों को लेकर अपने पत्ते खोले और रघुराज शाक्य को डिंपल के खिलाफ मैदान में उतारा. मैनपुरी की सीट को सपा का गढ़ माना जाता है और समाजवादी पार्टी यहां पर मजबूत है ऐसे में बीजेपी के लिए यहां पर कमल खिला पाना थोड़ा मुश्किल काम है. दरअसल बीजेपी की ओर से दो नाम दिल्ली यानी केंद्रीय प्रतिनिधि मंडल भेजे गए थे जिसमें रघुराज शाक्य पर भरोसा जताते हुए उनको मैदान में उतारा है.
मैनपुरी का जातिगत समीकरण
डिंपल कितना कमाल कर पाएंगी ये आने वाले वक्त में ही पता लग पाएगा. डिंपल यादव इससे पहले कन्नौज से दो बार सांसद रह चुकी है. इस उनके उपर जिम्मेदारी बड़ी दी गई है. मैनपुरी लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो मैनपुरी में सबसे ज्यादा यादव वोटर्स हैं. सपा के इस गढ़ में यादव वोटरों की संख्या करीब 4.25 लाख है.
यादव वोटर्स के बाद शाक्य वोटर्स का इस सीट पर दबदबा है. इस सीट पर शाक्य वोटर्स की संख्या करीब 3.25 लाख है. इसी जातिगत समिकरण को ध्यान में रखते हुए बीजेपी नें शाक्य जाति के उम्मीदवार पर भरोसा जताया है.
इस लोकसभा सीट पर ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 1.10 लाख है. इसके अलावा दलित वोटर्स की संख्या 1.20 लाख और लोधी वोटर्स की संख्या एक लाख के आसपास है. इन सबके बाद मैनपुरी सीट पर मुस्लिम वोटर्स का नंबर आता है. यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 55 हजार है.
1996 से रहा है सपा का दबदबा
मैनपुरी लोकसभा सीट पर 1996 से अभी समाजवादी पार्टी को कोई हरा नही पाया है. ऐसे में डिंपल के लिए ये एक बड़ी चुनौती है. वही बीजेपी ने जो जातिय समीकरण खेला है उससे यही पता लगता है कि भाजपा किसी भी मामले में पीछे नही रहेगी. यही कारण है कि यादव के बाद सबसे ज्यादे शाक्य है और बीजेपी ने शाक्य जाति के कैंडिडेट पर भरोसा जताया है. आपको बता दें कि पांच बार खुद मुलायम सिंह यहां से सांसद चुने गए थे, इसके अलावा मुलायम परिवार के ही तेज प्रताप सिंह यादव, धर्मेंद्र यादव एक-एक बार यहां से जीत चुके हैं. दो बार सपा के टिकट पर ही बलराम सिंह यादव ने यहां से चुनाव जीता था.
डिंपल के पक्ष में कौन सी बातें?
सपा ने काफी सोच समझकर डिंपल यादव को मैदान में उतारा है. माना जा रहा है कि नेताजी मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से डिंपल को चुनाव में सहानुभूति मिल सकती है. वही कल सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पीसी के दौरान कहा कि ये चुनाव में सपा की जीत मुलायम सिंह यादव को सच्ची श्रद्धांजलि होगी. इससे साफ होता है की समजवादी पार्टी ये उपचुनाव सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के नाम पर ही लड़ेगी. देखने वाली बात होगी कि ये उप चुनाव क्या नया अध्याय लिखता है.